चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है | ||||
पालन कर के देखो एक जमाना लगता है ॥१॥ | ||||
अंधों की सरकार बनी तो उनका राजा भी | ||||
आँखों वाला होकर सबको काना लगता है ॥२॥ | ||||
जय-जय के नारों ने अब तक कर्म किये ऐसे | ||||
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है ॥३॥ | ||||
कुछ भी पूछो, इक सा बतलाते सब नाम-पता | ||||
तेरा कूचा मुझको पागलखाना लगता है ॥४॥ | ||||
दूर बजें जो ढोल सभी को लगते हैं अच्छे | ||||
गाँवों का रोना, दिल्ली को गाना लगता है ॥५॥ | ||||
कल तक झोपड़ियों के दीप बुझाने का मुजरिम | ||||
सत्ता पाने पर, अब वो परवाना लगता है ॥६॥ | ||||
टूटेंगें विश्वास, कली से मत पूछो कैसा | ||||
यौवन देवों को देकर मुरझाना लगता है ॥७॥ | ||||
जाँच समितियों से करवाकर कुछ ना पाओगे | ||||
उसके घर में शाम-सबेरे थाना लगता है॥८॥ |
Poem
April 30, 2014
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मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने के लिए धन्यवाद
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