थामी जा चौमास थामी जा !!!! (कुमांउनी कविता )

Vinod
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“असमान में बादलोक घरघाट पड़ गो,
खेत-धूर-जंगल ले हरी-भरी हूण भगो !
हमर पाथर वाल *पाख ले फिर *चूड़ भगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरों में ले सरसराट पड़ गो,
नानथीनाक स्कूल जाण ले मुश्किल हे गो !
बूबुक गोरू गाँव जाड़क ले भेत हे गो…!
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

गाड़-घदेरुक पाड़ी ले *सरक पूज गो,
पाल बखाई खीम दा घट ले बंद हए गो !
जाग-जगां खेतों-भीड़ों में *छोई फूट गो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !!

अल्बेर चौमास दागे डरी ले लागन भगों,
किले की पिछाड बार हमर पहाडक भोते नुकसान कर गो !
हे इष्ट देवा हे चितई का गोल ज्यू मी बिनती लीबे फिर ए गो 
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो !
किले की दगडियों चौमासक बखत एगो ...!!!!

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